पहलगाम – “क्या लिखूँ कैसे लिखूँ कैसे कहूँ मन की व्यथा ……. by मेजर जनरल अभि परमार
पहलगाम
क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
कैसे कहूँ मन की व्यथा
शब्द होते तो लिख भी देता
इस विनाश की पटकथा
नेत्र से अंगार फूटे
वेदना से दिल भरा
रोष में डूबी कलम है
स्तब्ध है सारी धरा
आतंक से कब तक बचोगे
कब तक जियोगे सर झुका
कौन तुमसे ये कहेगा
भय का ये दीपक बुझा
जब इन्हें आश्रय दिया था
क्यों न पूछा इनका पता
जो आज तुमसे पूछते हैं
मजहब मुझे अपना बता
भयभीत तुम सब मर रहे थे
अपनी विवशता को दिखा
कब तक इसे कहते रहोगे
अपनी किस्मत का लिखा
संघर्ष तो करना पड़ेगा
गर्व से जीना अगर है
लड़ना स्वयं तुमको पड़ेगा
पशुमृत्यु से बचना अगर है
अभि परमार
27Apr
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