जम्मू हवाई अड्डे पर ड्रोन अटैक: इनसे रक्षा के लिए रचनात्मक और परिवर्तनात्मक कदम उठाने की आवश्यकता
जम्मू हवाई अड्डे पर ड्रोन अटैक: इनसे रक्षा के लिए रचनात्मक और परिवर्तनात्मक
कदम उठाने की आवश्यकता
ड्रोन हमला
26 और 27 जून 2021 की रात लगभग 1:40 पर और 1:46 पर दो धमाके सतवारी एयरपोर्ट पर सुनाई दिए। इन धमाकों से आसपास के रहने वाले जम्मू शहर के लोगों का दिल तो जरूर सहम गया होगा। पर जम्मू के लोगो ने बहुत आतंकी हमले झेले है और इसलिए वो अचंभित बिलकुल नहीं हुए होंगे। जम्मू का एयरपोर्ट सतवारी की वायु और थल सेना की छावनियों के बीचों बीच स्थित है। इसी कारण से भारतीय थल सेना के सुरक्षाकर्मी भी इसके चारो तरफ तैनात रहते हैं। यही कारण है की जम्मू हवाई अड्डे को जमीनी घुसपैठ से हमला करना बहुत ही मुश्किल है। शायद यही कारण था की इस एयर फाॅर्स बेस को हवाई मार्ग से ड्रोन द्वारा निशाना बनाने की कोशिश की गयी। यह ब्लास्ट हेलीकाप्टर डिस्पेर्सल छेत्र के पास हुआ जिसमे इस इलाक़े के पास एक बुलिडिंग की छत को हानि पहुंची और इसमें वायु सेना के एक वारंट अफसर और एक वायु सैनिक को कुछ मामूली चोट लगी। इस हमले का निशाना शायद डिस्पेर्सल एरिया में खड़े एक हेलीकाप्टर पर था।
चिंताजनक बातें
यह हमला एक बहुत ही सस्ता और सुरक्षित तरीका है। इसमें आतंकवाद को कम से कम नुकसान की संभावना है और अगर हमला सफल हो जाता तो हमारा अत्यधिक नुकसान होता साथ में भारत की साख को भी धक्का लगता। यह हमला शायद एक छोटे ड्रोन जो की P १६ हो सकता है। इस तरह के ड्रोन मन पोर्टेबल होते हैं, आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है और उन्हें रडार द्वारा पता लगाना बहुत ही मुश्किल है। अंजाम और भी भयानक हो सकता था अगर इसमें लौ एक्सप्लोसिव के बदले हाई एक्सप्लोसिव लगा होता। अगली बार बारूद की मात्रा और उसका प्रकार अलग होगा ऐसा मेरा अनुमान है। अभी तो इस हमले में केवल दो ही ड्रोन इस्तेमाल किए गए अगली बार शायद दो से कही ज्यादा डरोइन्स का इस्तेमाल किया जाए ताकि सफलता की संभावना और बढ़ जाये। यह भी देखा गया है की कई बार ड्रोन्स अपने एक्सप्लोसिव के साथ ही टारगेट में घुस जाते है जिससे हम कामीकाज़े (KamiKaze) ड्रोन हमला भी कहते है। दूसरे महायुद्ध में जापानी पायलट्स अपने हवाईजहाज को बड़े बड़े पानी के जहाजों में जानबूझ कर क्रैश करदेते थे ताकि उस समुंद्री जहाज किसी भी हालत में नष्ट हो जाये। अगली बार यह हमला और खतरनाक होगा। ये हमले भारत और पाकिस्तान सीमा के साथ लगे हवाई अड्डों जैसे की श्रीनगर, उधमपुर, जम्मू, पठानकोट, और अमृतसर पर ज्यादा होगा। ड्रोन से आतंकी अपने सज्जो सामान को भी आसानी से सेम्मा पार करा सकते है जो की हमारे लिए एक बड़े खतरे की घंटी है।
करना क्या होगा
इस तरह के हमले दुनिया में बहुत दिनों से हो रहे है। इन हमलों को स्टेट और नॉन स्टेट एक्टर्स दोनों ही कर रहे हैं पर भारत में प्रत्यक्ष रूप में किसी मिलिट्री बेस पर यह पहली बार हुआ है। अमेरिका, रूस, इजराइल, चीन और टर्की ड्रोन के इस्तेमाल और तकनीक में बहुत ही माहिर है, अमेरिका ने न जाने कितने आतंकियों को अफ़ग़ानिस्तान में ड्रोन हमले द्वारा मारा है। उसी तरह तुर्की ने सीरिया, अज़रबैजान – अर्मेनिआ की लड़ाई में इनका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है। इस तरह के हमलों को नाकाम करने के लिए सर्विलांस, इंटेलिजेंस, इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस और स्पॉट या पॉइंट (Spot / Point ) डिफेंस की अत्यधिक आवश्यकता है। अक्सर देखा गया है की सुरक्षा कर्मियों का डिफेन्स में काम काफी नीरस होने की वजह से इसमें चूक हो जाती है। साथ ही हमारा इंटेलिजेंस तंत्र काफी कमज़ोर है खास तौर पर खुफ़िआ तंत्र (Human Intelligence)। दूसरी बड़ी कमजोरी हमारी रही है अपने बेस के ऊपर सर्विलांस की इसके लिए हमें लो लेवल राडर्स, और आधुनिक नाईट विज़न यंत्रों की सख्त जरुरत है खास तौर पर अपने सेंसिटिव ठिकानो पर। हमारे संवेदनशील ठिकानों पर अक्सर डिफेंस सर्विस कोर के व्यक्तियों की डिप्लॉयमेंट होती है। ये जवान बहुत ही ईमानदार और कर्तव्यपरायण होते है पर उनकी उम्र काफी ज्यादा होती है। इसलिए सीमा वर्ती छेत्रों के महत्वपूर्ण ठिकानो पर वायु सेना को एक बेहतर फाॅर्स को खड़ा करना पड़ेगा ताकि इन तरह के खतरों को सफल होने से पहले ही नाकारा जा सके। इसके अलावा एकबार जब हम ड्रोन डिटेक्ट करलेते है तो उन्हें मार गिराने की क़ाबलियत भी हमारे पास होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में स्पॉट डिफेन्स या पॉइंट डिफेंस बहुत जरुरी हो जाता है। ड्रोन्स को नाकाम करने के लिए हम इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम जैसे की जैमर्स का इस्तेमाल कर सकते है। साउथ कोरिया में एक आधुनिक जैमिंग सिस्टम का टेस्ट किया जा रहा जो इस तरह के छोटे ड्रोन्स को नाकाम कर सकते हैं। इसी तरह ब्रिटेन की Brightstar Surveillance सिस्टम ने सितम्बर २०२० में एक नया रडार लांच किया है जिसका नाम है A 800 3D । यह छोटे छोटे कमर्शियल और हॉबी ड्रोन को डिटेक्ट कर सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसे बॉर्डर मैनेजमेंट और मिलिट्री सिस्टम में आसानी से सम्मिलित कर सकते हैं। अमेरिका भी एक हाई एनर्जी लेज़र सिस्टम पर काम कर रहा है जिससे ऐसे ड्रोन्स को बर्बाद और नाकाम किया जा सकता है। इसी तरह जब ड्रोन एकदम नजदीक आजाये उस हालत में उसे बर्बाद करने के लिए इजरायल और अमेरिका ने मिलकर ड्रोन खतरे को ड्रोन द्वारा ही बर्बाद करने का सिस्टम बनाया है। इस सिस्टम में रक्षा करने वाले ड्रोन में एक जाल होता है जो दुश्मन के ड्रोन को इसमें फंसा कर नाकाम कर देता है। इस सिस्टम का नाम है Skylord है।
स्काईलॉर्ड एंटी ड्रोन सिस्टम
पर इन सब सिस्टमों को डेवेलोप या खरीद कर लाने में भारत को बहुत समय लगेगा। तब तक इन्हे बर्बाद करने के लिए हमें तेज गति से फायर करने वाली मशीन गन्स से मार गिराने की कोशिश करनी चाहिए।हालांकि यह इतना कारगर तरीका नहीं है पर अगर सही ट्रेनिंग दी जाये तो यह असरदार हो सकता है। हवाई खतरों का सामना एक इंटीग्रेटेड तरीके से होना चाहिए। खास तौर से Swarm Drones (एक साथ ३०० – ४०० छोटे छोटे ड्रोन्स का सामूहिक इस्तेमाल ) के खिलाफ काफी हद तक हमें ट्रेडिशनल एयर डिफेन्स तरीकों से ही रक्षा करनी पड़ेगी।अंत में मेरे विचार से ड्रोन वारफेयर की तुलना हम एक हवाई गुरिल्ला वारफेयर से भी कर सकते हैं। इसलिए इनका काट भी एक गुरिल्ला वॉर की तरह ही मिलेगा यानि के सीमा से लेकर सवेदनशील टार्गेट्स तक की हवाई और जमीनी सर्विलांस और मजबूत खुफ़िआ तंत्र। अगर ये दोनों छमताएँ देश में अव्वल दर्जे की होगी तो हमें इन खतरों से निपटने में काफी सफलता मिलेगी।