दुविधा

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ये कैसी दुविधा है सैनिक
क्यों मन में ये आक्रोश भरा
जब सैनिक धर्म अपना ही लिया
तो लक्ष्य है क्या ये सोच ज़रा

अब तेरा है आकाश समस्त
और तेरी है सारी ये धरा
मत सोच के आगे क्या होगा
मत सोच के पीछे कौन रहा

अब मातृभूमि ही कर्म भूमि है
ले उठा हाथ में विजय ध्वजा
ये देश रहेगा ऋणी तेरा
जब तक सशक्त तेरी ये भुजा

गाण्डीव तुम्ही हो अर्जुन का
और वीर शिवा की तीव्र कटार
तुम ही प्रताप का साहस हो
तुम ही हो सांगा की हुंकार

हर युग में तुमने जन्म लिया
हर युग में किया शीश बलिदान
तुमने ही तो रणकौशल से
इस देश का हरदम रक्खा मान

तुमने देखा है जौहर भी
तुमने देखा है रक्त प्रपात
युध्द विजय या वीरगति
का नारा तुमसे ही विख्यात

तो इस युग में ये कैसी दुविधा
क्यों माथे पर है ये शंका
मत भूलो सीमाओं पर बजता
अब भी सैन्य शौर्य का डन्का

ये घड़ी बड़ी अनिश्चित है
हर ओर मचा कोलाहल है
विपरीत शक्तियां देख रहीं
हाथों में लिये हलाहल हैं

ये समय नहीं अब दुविधा का
ये समय नहीं अस्थिरता का
ये समय है कठिन परीक्षा का
ये समय है कर्म और निष्ठा का

तो गाण्डीव उठाओ हे अर्जुन
अब छोड़ो सारी दुविधायें
जब नेत्र तन गये सैनिक के
फिर क्या संकट क्या बाधायें

अब याद करो गुरु गोविंद जी को
और देश भक्ति का तिलक करो

फिर

‘ न डरो अरि से जब जाय लरो
निश्चय कर अपनी जीत करो ‘

अभि परमार

(मेजर जनरल आभि परमार, रि.)

(A sequel to the inspirational poem by Lt Gen Mukesh Sabharwal 😊)

 

4 thoughts on “दुविधा

  • June 17, 2022 at 9:56 pm
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    Beautiful expression of thought by a real soldier.
    Dada’s legacy to be proud of

  • June 17, 2022 at 1:45 pm
    Permalink

    Well written Gensaab,(Bana) did’nt know you had this hidden talent also.⁉️👍🏻👌🏻👌🏻👌🏻🙏🏻😊

  • June 17, 2022 at 12:09 pm
    Permalink

    Indeed so well written. Heartwarming…

  • June 17, 2022 at 12:05 pm
    Permalink

    Great poem. We have amidst us a soldier poet. Looking forward to many more compositions from your prolific pen

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