इमरान का पत्र: क्या पाकिस्तान वाकई शांति चाहता है? Amar Ujala 01 Apr 2021 Maj Gen Harsha Kakar

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान दिवस पर भेजे गए पत्र का जवाब देते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने पत्र में लिखा है कि दक्षिण एशिया में टिकाऊ शांति और स्थिरता भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर समेत सभी मुद्दों के हल पर निर्भर करती है। उन्होंने आगे लिखा है कि पाकिस्तान के लोग भारत समेत सभी पड़ोसियों से शांतिपूर्ण रिश्ता चाहते हैं। निश्चय ही, पत्रों का यह आदान-प्रदान औपचारिक किस्म का है, लेकिन इसमें अंतर्निहित भावनाओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

हाल ही में भारतीय सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने इंडिया इकनॉमिक कान्क्लेव में कहा कि ‘मार्च के पूरे महीन में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर एक भी गोली नहीं चलाई गई है, जो कि अनोखी घटना है। पिछले चार-पांच वर्षों में यह पहली बार है, जब एलओसी पर शांति है, जो वास्तव में भविष्य के लिए अच्छा है।’ एलओसी पर यह शांति संघर्ष विराम की घोषणा के बाद दिखी है, जिसकी घोषणा इस वर्ष 23 फरवरी को दोनों देशों के डीजीएमओ ने की थी। यह लगातार जारी है और दोनों तरफ की सीमाओं के करीब रहने वाले लोगों के लिए बड़ी राहत बनकर आई है। हालांकि यह छोटा कदम है, लेकिन इस क्षेत्र में शांति की राह बना सकता है।

इस निर्णय का श्रेय कई स्रोतों को दिया गया है, लेकिन सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि यह पिछले दरवाजे से की जा रही कूटनीति का नतीजा है। इसे पाक सेना का समर्थन तो हासिल है ही, संभावना है कि पाक सेना इस बातचीत का हिस्सा थी। जनरल नरवणे ने पाकिस्तान की स्वीकृति के कारणों के बारे में कहा कि ‘अफगानिस्तान से लगी पाक की पश्चिमी सीमा पर स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसके अलावा, पाकिस्तान के सिर पर एफएटीएफ की तलवार भी लटक रही है। पाकिस्तान उसकी ग्रे लिस्ट से बाहर होना चाहता है। तीसरा कारण है कि पाकिस्तान की अपनी कुछ घरेलू मजबूरियां भी हैं।’

कर्ज के जाल में फंसने, सीपीईसी के विफल होने, स्वास्थ्य सेवा के ध्वस्त होने सहित कई और भी संभावित कारण हो सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि पाक सेना, जिसने पहले अपने राजनीतिक नेतृत्व के सभी शांति प्रयासों को खारिज कर दिया था, अभी मौजूदा संघर्ष विराम का समर्थन कर रही है। खबरों में यह भी बताया गया है कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) मध्यस्थ की भूमिका में है, क्योंकि उसके भारत और पाकिस्तान, दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि यूएई और सऊदी अरब लगातार पाकिस्तान को चेतावनी दे रहे हैं कि वह अपनी कश्मीर नीति को बदले। इस्लामिक सहयोग संगठन में कश्मीर पर चर्चा करने या यहां तक कि उस पर प्रस्ताव को आगे बढ़ाने से इन्कार करना उनके गुस्से को जाहिर करता है।

संघर्ष विराम एक रणनीतिक कदम है और ईमानदारी दिखाने व विश्वास की कमी को कम करने के लिए जरूरी है, जो कि दोनों तरफ है। गर्मियों के दौरान इसकी निरंतरता पाकिस्तान के इरादे को प्रदर्शित करेगी। रणनीतिक विश्वास बहाली का यह कदम लंबित मुद्दों के रणनीतिक समाधान के लिए दरवाजे खोलेगा। दोनों पक्ष अपने-अपने मुख्य मुद्दे पर अड़े हुए हैं। भारत के लिए आतंकवाद, तो पाकिस्तान के लिए कश्मीर प्रमुख मुद्दा है। भारत जहां इस बात पर जोर देता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे, वहीं पाकिस्तान जोर देता रहा है कि भारत कश्मीर में बातचीत के लिए सही हालात बनाए। सकारात्मक  पहलू यह है कि दोनों तरफ की बयानबाजी कम हुई है। दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने का एक संकेत यह भी है कि पाकिस्तानी मंत्रिमंडल ने फिर से व्यापार शुरू करने पर चर्चा की। भारत द्वारा अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने के बाद सभी व्यापार बंद हो गए थे।

हालांकि ये शुरुआती दिन हैं। दोनों राष्ट्रों के बीच कई सारे मुद्दे हैं। यह उच्चायुक्तों की बहाली से लेकर व्यापार, पारगमन, खेल और आतंकवाद, कश्मीर, सर क्रीक व सियाचिन जैसे प्रमुख मुद्दों तक है। इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में इमरान खान ने कहा कि क्षेत्रीय शांति और पड़ोसी देशों के साथ व्यापार संबंधों में सुधार के बिना पाकिस्तान अपने भू-रणनीतिक स्थान का पूंजीकरण नहीं कर सकता है। उन्होंने भारत को मध्य एशिया से जोड़ने के लिए दरवाजे खोलने का संकेत दिया। सिंधु जल संधि के तहत हालिया वार्ता ने प्रदर्शित किया कि यदि दोनों राष्ट्र अपनी शत्रुता छोड़ते हैं, तो वे दोनों लाभान्वित हो सकते हैं।

दशकों के अविश्वास और आलोचनाओं के साथ दोनों में से कोई भी सरकार बातचीत की मेज पर सीधे बैठने और प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा, इस बात पर भी संदेह है कि क्या संघर्ष विराम का भावी पाक सेना प्रमुख समर्थन करेंगे, क्योंकि बाजवा 22 नवंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। वार्ता को आगे बढ़ाने में पिछले दरवाजे की कूटनीति प्रमुख भूमिका निभाएगी। ये उन मुद्दों को निर्धारित करेंगे, जिन्हें आसानी से हल किया जा सकता है और जिन पर न्यूनतम असहमति है। इनमें उच्चायुक्तों की बहाली, व्यापार, व्यवसाय और खेल हो सकते हैं। पर यह सवाल बना हुआ है कि कौन इस दिशा में
पहला कदम उठाएगा। अगर ऐसे कुछ समझौते होते हैं, तो भारत के लिए भी सार्क सम्मेलन के लिए पाकिस्तान के निमंत्रण को स्वीकार करने के दरवाजे खुल सकते हैं। इससे पाकिस्तान को कुछ कूटनीतिक लाभ मिल सकता है।

विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा बाद में होनी चाहिए। वे धीमे और श्रमसाध्य हो सकते हैं, क्योंकि दोनों पक्ष अपनी मांगों में बदलाव के लिए तैयार नहीं होंगे। भारतीय सेना प्रमुख ने 30 मार्च को कहा कि आतंकवाद में कमी लाने के लिए आतंकी शिविरों को खत्म करना होगा। जब रिश्तों में जमी बर्फ पिघलेगी, तभी हमें पता चलेगा कि पाकिस्तान कितना गंभीर है। जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच विश्वास की बहाली होगी, दोनों देशों को पिछले दरवाजे की कूटनीति के जरिये छोटे और गैर विवादित मुद्दों का समाधान तलाशना चाहिए। उन्हें लागू करने से जरूरी आत्मविश्वास का निर्माण होगा और द्विपक्षीय संबंध बढ़ेंगे। अब दोनों देशों के बीच शांति का समय आ गया है। चूंकि पाक सेना इन कदमों का समर्थन करती है, इसलिए उम्मीद है कि इस क्षेत्र में लंबे समय से प्रतीक्षित शांति कायम होगी।