कैसी है वह राह जहाँ पग पग पर बिखरे शूल न हों …….. अभि परमार 🌻

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कैसी है वह राह जहाँ पग पग पर बिखरे शूल न हों

कैसा है वो प्रण प्रयास जिसमे होती कुछ भूल ना हो

कैसा है संघर्ष जहाँ विपदायें प्रतिकूल ना हों

वो कैसा जीवन है जिसकी राह में उड़ती धूल न हो

मत ढूँढो ऐसे उपवन अब जिनमे खिलते फूल न हों

बस कृत निश्चय हो चले चलो संयोग भले अनुकूल न हो

    अभि परमार 🌻

(जयशंकर प्रसाद से प्रेरित)

3 thoughts on “कैसी है वह राह जहाँ पग पग पर बिखरे शूल न हों …….. अभि परमार 🌻

  • June 12, 2022 at 11:59 am
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    Sir, very beautiful composition, my compliments.
    Warm regards,
    Colonel GPS Kaushik

  • June 11, 2022 at 9:05 pm
    Permalink

    Sir, This is indeed a very fine poem and in the frame of some established poets of yore. I say this with conviction….Our fond regards…. LK Pandey

  • June 11, 2022 at 4:30 pm
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    Sir, beautiful composition, especially last line which sums up the dharma of a fauji. Looking forward to many mor w such motivating compositions.
    Warm regards

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