कैसी है वह राह जहाँ पग पग पर बिखरे शूल न हों …….. अभि परमार 🌻
कैसी है वह राह जहाँ पग पग पर बिखरे शूल न हों
कैसा है वो प्रण प्रयास जिसमे होती कुछ भूल ना हो
कैसा है संघर्ष जहाँ विपदायें प्रतिकूल ना हों
वो कैसा जीवन है जिसकी राह में उड़ती धूल न हो
मत ढूँढो ऐसे उपवन अब जिनमे खिलते फूल न हों
बस कृत निश्चय हो चले चलो संयोग भले अनुकूल न हो
अभि परमार 🌻
(जयशंकर प्रसाद से प्रेरित)
Sir, very beautiful composition, my compliments.
Warm regards,
Colonel GPS Kaushik
Sir, This is indeed a very fine poem and in the frame of some established poets of yore. I say this with conviction….Our fond regards…. LK Pandey
Sir, beautiful composition, especially last line which sums up the dharma of a fauji. Looking forward to many mor w such motivating compositions.
Warm regards