India on the stage of world politics Amar Ujala 27 Sep 2021 Maj Gen Harsha Kakar

Loading

https://www.amarujala.com/columns/opinion/united-nations-india-on-the-stage-of-world-politics-pm-modi?src=top-lead

हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा का सितंबर का सत्र वैश्विक राजनीति का केंद्र बिंदु बन जाता है। सत्र के अंतराल में विभिन्न वैश्विक मंच मिलकर प्रस्ताव पारित करते हैं, जिनमें से ज्यादातर अर्थहीन होते हैं। राष्ट्रीय नेतागण संबोधन के अधिकार के तहत नकली और काल्पनिक झड़पों को आधार बनाकर अपने पड़ोसी देशों पर आरोप लगाते हैं और महासभा के मंच का दुरुपयोग करते हैं। कुछ नेता एक ही मुद्दे को सालोंसाल आधार बनाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र का बाहरी हिस्सा विरोध प्रदर्शन करने वाले विभिन्न समूहों से भरा होता है। इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में यह सब तो खैर दिखा ही, कुछ दूसरे कारणों से भी यह सत्र उल्लेखनीय रहा। जैसे कि अफगानिस्तान की नई अंतरिम सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में बोलने की अनुमति मांगी, जिसे खारिज कर दिया गया। नई सरकार संयुक्त राष्ट्र में अपने मौजूदा स्थायी प्रतिनिधि को भी हटाना चाह रही थी, पर उसकी यह मांग भी खारिज कर दी गई।

इसी दौरान होने वाला सार्क विदेश मंत्रियों का सालाना सम्मेलन भी इस बार अंतिम समय में रद्द कर दिया गया, क्योंकि पाकिस्तान इसमें तालिबान की अंतरिम सरकार के प्रतिनिधि को भी शामिल करने का अनुरोध कर रहा था। पर सार्क के बाकी देशों ने सर्वसम्मति से इस सुझाव को खारिज कर दिया, क्योंकि इनमें से किसी ने भी उसे मान्यता नहीं दी है।

ऐसे ही, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने पनडुब्बी समझौते में से फ्रांस को जिस तरह बाहर कर दिया है, इस पर फ्रांस के प्रतिनिधि ने महासभा के मंच से नाराजगी जताई। इसके जवाब में उन्होंने फ्रांस-भारत और ऑस्ट्रेलिया की संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान होने वाली सालाना बैठक रद्द कर दी। उल्लेखनीय है कि जी-20 की बैठक में भी चीन के विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध हटाने और आपातकालीन इस्तेमाल के लिए अफगानिस्तान के संचित कोष का नई सरकार द्वारा इस्तेमाल करने की अनुमति देने की मांग की थी। लेकिन इस मुद्दे पर चीन के रुख से दूसरे देश सहमत नहीं हैं।

भारतीय प्रधानमंत्री ने वाशिंगटन से अपनी अमेरिका यात्रा की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने विभिन्न कंपनियों के सीईओ के साथ बातचीत की, तो क्वाड के नेताओं और क्वाड देशों के शासनाध्यक्षों से बात की, तो अमेरिकी राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति से भी उनका संवाद हुआ। इस दौरान एकाधिक अवसरों पर आतंकवाद के सहयोगी के रूप में पाकिस्तान की भूमिका सामने आई।

अमेरिकी प्रेस ने इस पर भी काफी लिखा कि अमेरिका को नरेंद्र मोदी से मानवाधिकार और हिंदू राष्ट्रवाद पर सख्त सवाल पूछने चाहिए। हालांकि भारत अमेरिका का प्रमुख साथी और मजबूत क्वाड सहयोगी है। क्वाड देशों के शासनाध्यक्षों की मुलाकात सबसे उल्लेखनीय रही, जिसकी मेजबानी जो बाइडन ने की। इसके साझा बयान में कहा गया कि क्वाड विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है, तथा निकट भविष्य में और शक्तिशाली बनकर उभरेगा।

जैसा कि अपेक्षित था, चीन ने इसके प्रतिकूल टिप्पणी की। उसका मानना है कि यह संगठन उसके खिलाफ है। जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो अमेरिका की उपेक्षा को देखते हुए इमरान खान न्यूयॉर्क नहीं गए और महासभा की बैठक को वर्चुअली संबोधित किया। इमरान वहां जाते, तो अमेरिका में रह रहे अफगानियों और वैश्विक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा उनका तीखा विरोध किया जाता, क्योंकि वे जानते हैं कि अफगानिस्तान की मौजूदा अस्थिरता के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है।

चूंकि नरेंद्र मोदी ने वाशिंगटन में बाइडन समेत दुनिया के तमाम ताकतवर नेताओं और लोगों से मुलाकात की, ऐसे में, उनके प्रतिद्वंद्वी इमरान को अपनी उपेक्षा और भी कचोटती। हालांकि पाक विदेश मंत्री एसएम कुरैशी न्यूयॉर्क गए और कहा कि तालिबान सरकार ने दोहा समझौते का भले पालन न किया हो, पर विश्व समुदाय को उससे रिश्ता कायम करना चाहिए। उनका प्रस्ताव खारिज हो गया।

ऐसे में, अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन से कुरैशी की मुलाकात ही पाकिस्तान के अखबारों के लिए उपलब्धि थी। पर उस मुलाकात के बाद दोनों तरफ के बयान में फर्क देखा गया। मुलाकात के बाद अपने ट्वीट में ब्लिंकन ने अफगानिस्तान का जिक्र किया, जबकि कुरैशी का कहना था कि ब्लिंकन से कश्मीर और अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्ते पर बात हुई! संयुक्त राष्ट्र महासभा में कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं।

जैसे, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन ने अपेक्षा के अनुरूप ही कश्मीर पर टिप्पणी की, जिसका जवाब हमारे विदेश मंत्री ने दिया। उइघुरों के मुद्दे पर खामोश ओआईसी ने अपने बयान में कश्मीर का जिक्र किया, जैसा कि वह हर बार करता है। यही एक टिप्पणी पाकिस्तान के पक्ष में गई। इमरान ने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र और तालिबान का समर्थन किया। नरेंद्र मोदी का संबोधन इससे अलग था। उन्होंने भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों और भारत के बढ़ते महत्व का जिक्र किया।

पाकिस्तान को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने उन देशों को निशाना बनाया, जो आतंकवाद को अपनी नीति बनाते हैं। उन्होंने चीन का जिक्र किए बगैर उसकी विस्तारवादी नीति और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रिपोर्ट बदलने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर दबाव बनाने के फैसले की आलोचना की। मोदी और इमरान के भाषणों में फर्क साफ दिखाई पड़ा। इमरान ने जहां अपनी हर मुश्किल के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया, वहीं मोदी ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।

इमरान ने काबुल की दमनकारी तालिबान सरकार को मान्यता देने की मांग की, जबकि मोदी के भाषण में अफगान महिलाओं और बच्चों के प्रति चिंता थी। इमरान के भाषण में अमेरिका, भारत और वैश्विक समुदाय पर आरोप थे, तो मोदी ने विकास, उम्मीद और कोविड से लड़ने की बात की। अपनी मुद्रा और देहभाषा में इमरान प्रतिगामी दिखे, तो मोदी भविष्यद्रष्टा।

Read more: https://www.amarujala.com/columns/opinion/united-nations-india-on-the-stage-of-world-politics-pm-modi?src=top-lead