उड़ने कि जब चाह हो … by मेजर जनरल अभि परमार (से.नि)
उड़ने कि जब चाह हो आकाश भी ऊँचा नहीं लक्ष्य ढूंढो तुम जहां कोई अभी पहुचा नही पंख जब फैला
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Read moreकारगिल के विजय दिवस पर तुमको मेरा नमन प्रणाम देश भक्ति और देश प्रेम का तुम्हीं साक्ष्य हो तुम्हीं प्रमाण
Read moreसफ़र नयी उमर थी नया सफ़र था न रहनुमा ना हमसफ़र था मग़र वो जज़्बा अजब था यारों कदम जो
Read moreविश्वास फिर दिखी भारत की महिमा फिर जागा खुद में विश्वास अनेकता में एकता का कैसा था अद्भुत प्रयास जाति
Read moreतू अजेय निर्भीक है शक्ति का प्रतीक है तू गर्व है अभिमान है विजय का निशान है तू शौर्य की
Read moreहिन्दी दिवस पर 👇 कभी कभी बिन बुलाये कभी-कभी बिन बुलाये भी आया करो कभी बिना वजह भी मुस्कराया करो
Read moreआज फिर तिरंगे का चलो सम्मान हुआ घर घर पर लहराते देख मन में अभिमान हुआ और अच्छा लगा आज
Read moreसात दशक और पांच वर्ष अब पूर्ण हुए आज़ादी के देशभक्त दीवानो की आहुति से बनी समाधि के पूर्ण विराम
Read moreकैसी है वह राह जहाँ पग पग पर बिखरे शूल न हों कैसा है वो प्रण प्रयास जिसमे होती कुछ
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